(दादी माँ के नुस्खे)
चिर यौवन के राज
चिंता एवं स्वास्थ्य
भोजन के हानिकारक संयोग
समस्त रोगों की जड़ : त्रिदोष
चिर यौवन का राज
आदिकाल से ही यौवन को अक्षुण्ण रखने के लिए तथा उम्र में वृद्धि करने के लिए खोज एवं प्रयोग होते रहे हैं। वास्तव में यौवन का गुजरना ही बुढ़ापे का आमंत्रण है, जिसका अंत मृत्यु में है। प्राचीन समय में अनेक ऋषि-मुनियों के शतायु एवं दीर्घायु होने के प्रमाण भी हैं, तबसे लेकर आज तक अक्षुण्ण यौवन या दीर्घायु प्राप्त करने के लिए जितनी भी जानकारी हमें प्राप्त है, उसका सार इस प्रकार है
* प्राकृतिक, सादा सात्विक एवं नियमित जीवन जिएं। * प्राकृतिक वस्तुओं का उपयोग करें।
* प्रदूषण से मुक्त शुद्ध हवा, पानी एवं भोजन का सेवन करें।
* समय पर भोजन एवं शयन करें। नियमित व्यायाम एवं योगासन करे । * रोजाना 5-6 किलोमीटर पैदल चलें।
* कच्ची सब्जियाँ एवं फलों की ज्यादा मात्रा भोजन में शामिल करें।
* अंकुरित अनाज एवं दलहनों का नियमित उपयोग करें। ** रात को मुट्ठी भर मैथी दाने को गलाकर प्रातः पीसें और एक गिलास पानी,
आधा नींबू एवं दो चम्मच शहद डालकर पीएं। * आंवला, हरड आदि का नित्य सेवन करें।
* मल-मूत्र, छींक आदि के आवेग को रोकें नहीं।
* धूम्रपान व मदिरापान का पूर्णतया त्याग करें।
* चालीस वर्ष की उम्र के बाद प्रोटीन की न्यून मात्रा लें एवं वसा का सेवन पूर्णतया बंद कर दें। पचहत्तर के पश्चात् अन्न त्याग दें। केवल सब्जी, फल एवं रसाहार पर रहें।
* आहार के साथ-साथ विहार पर भी ध्यान दें।
* मानसिक शांति रखें। ईर्ष्या, द्वेष, दिखावे आदि से दूर रहें। ये व्यर्थ के तनाव पैदा करते हैं।
* दिनचर्या में कुछ समय अपने मनपसंद कार्य या शौक के लिए अवश्य रखें, जो केवल मानसिक तुष्टि के लिए ही किया जाए।
दादी माँ के नुस्खे
चिंता एवं स्वास्थ्य
• आपने सुना होगा 'चिंता चिता समान' चिंता से सर्वप्रथम तनाव, तत्पश्चात् शारीरिक अस्वस्थता । उत्पत्ति होती है। अतः उत्तम स्वास्थ्य के •लिए परम आवश्यक है कि हम सभी प्रकार की चिंताओं, क्रोध, द्वेष व तनाव आदि से दूर रहें।
चिंता त्याग कर ही हम स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकते हैं और चिंता त्यागना कोई कठिन काम भी नहीं है। केवल निम्न वर्णित नियमों का पालन करें चिंता स्वयं दूर भाग जाएगी
* सदैव खुश रहें। समस्याओं से घबराएं नहीं बल्कि इनका साहसपूर्वक मुकाबला करें। जो लोग समस्याओं से घबराते हैं, वे हालात के सामने न केवल हार मान लेते हैं, बल्कि अपना स्वास्थ्य भी नष्ट कर लेते हैं। * फल की चिंता छोड़कर अपने प्रत्येक उत्तरदायित्व का पालन लगन एवं
ईमानदारी से करें। प्रकृति स्वयं ही इसका फल देगी। * हालात से कभी निराश न हों। जो व्यक्ति निराश हो जाते हैं, वे जीवन को
बोझ महसूस करने लगते हैं। जीवन बोझ नहीं बल्कि एक वरदान है।
* अपने कर्तव्यों के प्रति निष्ठावान बनें। कर्तव्य का पालन मन को वास्तविक
प्रसन्नता एवं तृप्ति प्रदान करता है। * अधिकांश रोगों की उत्पत्ति मानसिक असंतोष, चिन्ता एवं परेशानियों के कारण ही होती है। इनसे सदैव बचना चाहिए।
* कभी किसी बात का वहम नहीं करना चाहिए, क्योंकि वहम ही प्रत्येक रोग की उत्पत्ति का कारण होता है और इसका कोई इलाज नहीं।
* सुखी वह नहीं होता जिसके पास बहुत होता है बल्कि सुखी वही हो सकता है जो सन्तोषी हो। सन्तोष का ही दूसरा नाम सुख है। हमारे पास क्या है इसका सुख से कोई सम्बन्ध नहीं है, बल्कि जो हमारे पास है उससे राजी रहने से, सन्तुष्ट रहने से सुख का सम्बन्ध है।
दादी माँ के नुस्खे
भोजन के हानिकारक संयोग
* दूध के साथ दही, नमक, खट्टी चीजें, इमली, खरबूज, नारियल, मूली या उसके पत्ते, तुरई, बेल, कुल्थी, खट्टे फल, सत्तू हानिकारक होते हैं। दूध में गुड़ घोलकर सेवन नहीं करना चाहिए। इससे प्रत्यक्ष में ही दूध
फट जाता है। कटहल या तेल से बने पदार्थ भी हानिप्रद हैं।
* दही के साथ खीर, दूध, पनीर, गर्म भोजन, केला या केले का साग, खरबूजा, मूली, इत्यादि नहीं लेना चाहिए। * घी के साथ- ठण्डा दूध, ठण्डा पानी और समान मात्रा में शहद
हानिप्रद होता है।
* शहद के साथ- मूली, खरबूजा, समान मात्रा में घी, अंगूर, वर्षा का
जल और गर्म जल हानिकारक होते है।
* खीरा के साथ ककड़ी नहीं लेना चाहिए। * कटहल के बाद- पान हानिप्रद है।
* मूली के साथ- गुड़ हानिप्रद है। * चावल के साथ- सिरका हानिप्रद है।
* खीर के साथ खिचड़ी, खट्टे पदार्थ, कटहल, सत्तू नहीं लेना चाहिए। * गर्म जल के साथ शहद हानिप्रद होता है। * शीतल जल के साथ- मूंगफली, घी, तेल, खरबूजा, अमरुद, जामुन,
ककड़ी, खीरा, गर्म दूध अथवा गर्म भोजन नहीं लेना चाहिए।
* तरबूज के साथ- पोदीना या शीतल जल नहीं लेना चाहिए। * चाय के साथ- खीरा, ककड़ी या ठण्डे फल या ठण्डा पानी नहीं लेना चाहिए।
* मछली के साथ- दूध, गन्ने का रस, शहद और पानी के किनारे रहने वाले पक्षियों का मांस नहीं खाना चाहिए।
* माँस के साथ- मधु या पनीर लेने से पेट खराब होता है। * गर्म भोजन के साथ- ठण्डे भोजन या ठण्डे पेय हानिप्रद होते हैं।
* खरबूज के साथ- लहसुन, मूली या उसके पत्ते, दूध अथवा दही हानिप्रद होते हैं।
* कोसा, तांबा या पीतल के पात्रों में रखी हुई वस्तु जैसे घी, तेल, खटाई दही, छाछ, दूध, मक्खन, रसदार दाले, सब्जियाँ आदि विषाक्त हो जाती हैं, अतः उनमें देर तक रखे पदार्थ नहीं खाने चाहिए। एल्यूमीनियम एवं प्लास्टिक के बर्तनों में तरल पदार्थ रखने, उबालने एवं खाने पीने के विभिन्न प्रकार के रोग पैदा होते हैं।
समस्त रोगों की जड़ : त्रिदोष
आयुर्वेद के अनुसार समस्त रोगों का कारण त्रिदोष है। त्रिदोष अर्थात् वान पित्त और कफ का प्रकुपित होना। ये तीनों दोष प्रकुपित होते हैं, तो शरीर में कौन-कौन से लक्षण प्रकट करते है, उन्हें निम्न विवरण से समझा जा सकता है।
वात प्रकोप के लक्षण : पेट फूलना, गैस बनना औल अधो-वायु के रूप में बार-बार गैस का निकलना, लेकिन इसमें दुर्गन्ध का न होना और जोर की आवाज करते हुए निकलना, जोड़ो का दर्द होना, डकारें आना लेकिन डकार के साथ खड्ट्टा या चरपरा पानी न आना, हिचकी चलना, सरदर्द होना, बार-बार मुँह सूखना, प्यास मालूम होना, आमवात या सन्धिवात (गठिया) रोग होना, सायटिक होना, हाथ पैर सड़पना, त्वचा रूखी-सूखी होना, होंठों पर पपड़ी आना या होंठ सूखना, त्वचा का वर्ण मलिन होना, मल सूखना, कब्ज रहना, मल विसर्जन से पहले आवाज के साथ अधोवायु निकलना, नाक सूखना, बेचैनी होना, नींद न आना आदि लक्षण प्रकट होते हैं।
वात प्रकोप का शमन: स्निग्ध (चिकनाई युक्त), भारी, मधुर, अम्ल व लवण रस युक्त, ताजे पदार्थों का सेवन करने से वात का शमन होता है। वात प्रकोप का शमन करने के लिए दोनों वक्त शौच के लिए जाना चाहिए, कब्ज नहीं होने देना चाहिए, देर रात तक जागना नहीं और सुबह देर तक सोना नहीं चाहिए, दिन में 6-7 बार पानी पीना चाहिए, भोजन खूब चबा-चबा कर खाना चाहिए, ज्यादा ठण्डे वातावरण में नहीं रहना चाहिए, ठण्डे पदार्थों का नहीं करना चाहिए और बासी भोजन या बासे पदार्थ नहीं खाना चाहिए।
पित प्रकोप के लक्षण पेट में अम्लता (एसिडिटी) का बढ़ना और बढ़ते-बढ़ते अम्ल पित्त (हायपर एसिडिटी) की स्थिति बन जाना, जिससे पेट, छाती और गले में जलन होना, आँखों में व पेशाब में जलन होना, गुदा के अन्दर गर्मी का अनुभव होना, अधोवायु निकलने पर और मल विसर्जन होने पर आवाज होना तथा कड़वी या खट्टी दुर्गन्ध आना, पतले दस्त होना, बंधा हुआ मल या पतला दस्त गर्म होना, डकार में खट्टी बास आना, डकार के साथ गले में चरपरा, तीखा व खट्टा पानी आना या अन्न का अंश आना, मुँह व नाक से गर्म बफारे निकलना, मुँह का स्वाद कड़वा होना, मुँह में खड्ट्टा पानी आना, जी मचलाना, उल्टी होना, सिरदर्द होना और उल्टी होने पर सिरदर्द का कम होना या बन्द होना, छाया में रहने पर भी ऐसा लगे जैसे धूप में हैं और त्वचा गर्म हो रही है आदि लक्षण प्रकट होना।
पित्त प्रकोप का शमन : हल्के मीठे, चिकने (स्निग्ध), कषाय, मधुर और तिक्त रस वाले पदार्थ, कफकारी पदार्थ, सुपाच्य पदार्थ, शीतल और तरल पदार्थों के सेवन से पित्त का प्रकोप शान्त होता है। सुबह सूर्योदय से पूर्व शौच व स्नान से निवृत हो जाना, शीतल जल से स्नान, ठण्डाई व शर्बत का सेवन, तेल मालिश, दूध-पानी की लस्सी, आगरे के पेठे, नारियल का पानी, पैरों के तलवों में मेंहदी का लेप करना, मीठा पतला सत्तू, नींबू शक्कर की शिकंजी, मनुक्का का पानी, मीठे अंगूर व मीठे संतरे, दूध व केला, प्याज का रस, मक्खन मिश्री व कच्चा नारियल आदि पदार्थों का सेवन करने से पित्त का प्रकोप शान्त होता है। तेज मिर्च मसालेदार, खट्टे, नमकीन, लाल मिर्च, माँस, अण्डा, शराब, तम्बाकू, तैलीय पदार्थ, चाट-पकौड़ी आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। दिन में नहीं सोना चाहिए।
कफ प्रकोप के लक्षण: शरीर में भारीपन होना, मुँह मीठा और गीला रहना, पेट में भारीपन, गले में कफ, खाँसी, सर्दी-जुकाम, श्वास कष्ट, सुस्ती बनी रहना, खाने के प्रति अरूचि, नींछ ज्यादा आना, अधोवायु निकलने या विसर्जन होने पर आवाज होना और मीठी सड़न युक्त दुर्गन्ध आना, सिर भारी
होना हाथ-पैकड़न, छाती में भारीपन होना, गला बैठनाई टॉशिला पर सूजन होना आदि लक्षण प्रकट होते है।
कफ प्रकोप का शमन काय करबापदार्थों करना तथा मधुर, अम्ल और लवण रस वाले पदार्थों का सेवन चिकनाई युक्त व अधिक मीठे पदार्थों का सेवन न करना, खटाई नखान खट्टे पदार्थ न खाना, मलाई, खड़ी जैसे कफ वर्धक पदार्थ न खाना ि का पानी न पीना, उण्डे वातावरण में न रहना, शाम को शौच अवश्य जाना ठण्ड और ठण्डी हवा से बचाव करना, बासी और ठण्डे पदार्थ न खाना, गई कपड़े पहनना, सोने से पहले दूध में 2 छुहारे उबाल कर खाना, ऊपर से दूध पी लेना, गर्म दूध में आधा चम्मच पिसी हल्दी घोलकर पीना आदि उपाय कफ प्रकोप का शमन करते हैं।
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